जीने की इच्छा बुझ गयी तुममे, मौत से इतनी मुहब्बत कहाँ सही था? जीने की इच्छा बुझ गयी तुममे, मौत से इतनी मुहब्बत कहाँ सही था?
ठंड से कांपता हुआ, कंबल में दुबका मैं। लाचार वसंत पर, जोर से चिल्लाया। ठंड से कांपता हुआ, कंबल में दुबका मैं। लाचार वसंत पर, जोर से चिल्लाया।
अब उसमें ही तुम्हारा अक्स में देख लिया करूँगी।। देख देख कर उसको ही ये नीरस जीवन जी लिय अब उसमें ही तुम्हारा अक्स में देख लिया करूँगी।। देख देख कर उसको ही ये नीरस जी...
प्रकृति से प्रेम प्रकृति से प्रेम
दीवाने जिंदगी तुम बहुत ख़ास हो,, मुहब्बत की दुनियां की तुम मुमताज़ हो, दीवाने जिंदगी तुम बहुत ख़ास हो,, मुहब्बत की दुनियां की तुम मुमताज़ हो,
हैं बहुत याद आता है बचपन और याद आती है स्कूलों की छुट्टियां। हैं बहुत याद आता है बचपन और याद आती है स्कूलों की छुट्टियां।